: महासमुंद में विद्याचरण के जीत का रिकार्ड तोड़ रुपकुमारी बनी पहली महिला सांसद...कांग्रेस के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को जनता ने सिरे से नकारा...। पढ़िए खास रिपोर्ट और इनसाइड स्टोरी....

महासमुंद में विद्याचरण का रिकार्ड तोड़ रुपकुमारी बनी पहली महिला सांसद..कांग्रेस के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को जनता ने सिरे से नकारा...।
डीके ठाकुर / गरियाबंद (छत्तीसगढ़) । प्रदेश के हाई प्रोफाइल सीटों में से महासमुंद में प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू को भाजपा की रूप कुमारी चौधरी ने 1,45,456 मतो के एक बड़े अंतर से करारी शिकस्त दे यहां की प्रथम महिला सांसद होने का गौरव हासिल करने के साथ ही वह अपनी जीत के माध्यम से कभी सूबे की राजनीति के छत्रप रहे विद्याचरण शुक्ल के जीत के मार्जिन का रिकार्ड तोड़, रिकॉर्ड अपने नाम करने में भी सफल रही है, गौरतलब है कि 1984 के चुनाव में यहां विद्याचरण शुक्ल ने रमेश अग्रवाल को 1,39,140 मतो के अंतर से पराजित किया था जो अब तक का रिकार्ड था। यही नही रूप कुमारी चौधरी ने संसदीय सीट के आठो विधानसभा क्षेत्र से बढ़त भी ले ली।
यहां यह बताना लाजमी है कि लोकसभा 2019 का चुनाव भाजपा ने 90511 मतो के अंतर से जीता था वही वही 2023 के विधानसभा चुनाव में चार विधानसभा में भाजपा ने तो चार पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी लेकिन समूचे लोकसभा क्षेत्र में भाजपा एवं कांग्रेस को मिले कुल मतो के आधार पर कांग्रेस ने भाजपा पर 9483 मतो की बढ़त बना ली थी। यहां भाजपा ने रूपकुमारी को पहले से ही अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया था जिसे कांग्रेसी हल्के में लूज कैंडिडेट माना जा रहा था, इस अनुकूल स्थिति को देखकर लोकसभा चुनाव में इस सीट पर प्रदेश के बड़े हाई प्रोफाइल नेताओं की नजरेें टिकी हुई थी,और कांग्रेस ने अंततः अपने सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले के तहत साहू समाज के कद्दावर नेता वह संसदीय सीट के अंतर्गत गरियाबंद और महासमुंद जिले के प्रभारी मंत्री रहे ताम्रध्वज साहू को दुर्ग से हटा बतौर कांग्रेस प्रत्याशी महासमुंद शिफ्ट कर दिया ,साहू के नाम की घोषणा होती ही कांग्रेस में ही उनके बाहरी होने के मुद्दे पर विरोध और बगावत शुरू होने लगे विरोध में सरायपाली बसना से लेकर धमतरी तक बड़ी संख्या में नेताओं व पार्टी कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन कर लिए ।समय गुजरने के साथ मामला सतही तौर पर शांत तो हो गया लेकिन अंदरूनी हल्के में नाराजगी कायम रही जनता ने भी 'स्थानीय बनाम बाहरी' के मुद्दे पर वोटिंग करते हुए कांग्रेस के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को सिरे से खारिज कर दिया।जिन विधानसभा क्षेत्रों से कांग्रेस प्रत्याशी को निर्णायक बड़ी लीड़ तय मान रहे थे वही से वे बड़े अंतर से बुरी तरह पिछड़ गए।
चक्रव्यूह महासमुंद का - रणनीति बघेल की.? धनेंद्र के बाद निपटे ताम्रध्वज भी....।
यदि राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो लोकसभा चुनाव के दौरान में कांग्रेस आलाकमान के करीबी होने के नाते टिकट वितरण में एकतरफा भूपेश बघेल की चली ताम्रध्वज साहू दुर्ग से चुनाव लड़ना चाहते थे तो भूपेश बघेल वहां से हटाने पर तुले थे जिसके चलते एक रणनीति के तहत उन्हें निपटाने की गरज से महासमुंद में उतारा गया और निपट भी गए। इसके पूर्व में भी 2019 के लोकसभा चुनाव कुछ ऐसी ही रणनीति के तहत साहू समाज के कद्दावर नेता पूर्व पीसीसी चीफ व पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू भी निपटाये गए थे । विश्लेषकों की माने तो प्रदेश में जातिगत सियासी समीकरण साहू समाज के पक्ष में होने और ये दोनों ही नेता अपनी मजबूत जमीनीं पकड़ और पार्टी आलाकमान के समक्ष मजबूत वजूद रखने के कारण ये दोनों ही नेता बघेल की आंखों के किरकिरी बने हुए थे। कारणो पर चर्चा करे तो 2018 के विधानसभा चुनाव के पश्चात अप्रत्याशित बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद दिल्ली दरबार में जब मुख्यमंत्री के लिए लॉबिंग शुरू हुई तो विधायकों की संख्या बल के हिसाब से टी एस सिंहदेव भारी पड़ते दिखे तो जातिगत समीकरणों के आधार पर ताम्रध्वज साहू और धनेंद्र साहू मजबूत नजर आए ,जैसे धनेंद्र साहू को अपना पक्ष कमजोर लगा तो वे ताम्रध्वज साहू के साथ हो लिए इस दौड़ में भूपेश बघेल काफी पिछड़ गए थे और अंततः ताम्रध्वज साहू का नाम लगभग फाइनल हो गया, दुर्ग स्थित उनके निवास में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई लेकिन बाजी हाथ से निकलते देख भूपेश बघेल सिंहदेव को साथ में समेट साहू के नाम घोषणा के पूर्व पार्टी आलाकमान के समक्ष अपनी असहमति जता विद्रोह के भी संकेत दे दिए और अंततः दबाव में आलाकमान ने सीधे सरल स्वभाव के ताम्रध्यक्ष का नाम किनारे कर एक फार्मूले के तहत छत्तीसगढ़ के सीएम के लिए भूपेश बघेल के नाम की घोषणा कर दी इसके बाद से ही दोनों में दोनों का कद्दावर नेता भूपेश बघेल के निशाने पर रहे हैं । 2019 के लोकसभा चुनाव में महासमुंद संसदीय सीट धनेंद्र साहू के नाम की घोषणा करवा उन्हें चुनाव मैदान में उतार बीच मझधार में छोड़ दिया गया सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी होने के बावजूद उन्हें सत्ता संगठन से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया, वे ताचुनाव संसाधनों के अभाव से जुझते रहे और भाजपा के एक सामान्य सियासी कद के प्रत्याशी से 90511 मतो से पराजित हो गए सामाजिक समीकरण और पार्टी के वरिष्ठतम विधायक होने के नाते मंत्रिमंडल में मजबूत दावे के बावजूद बघेल ने उन्हें 5 वर्षों तक लूप लाइन में ही रखा अपने सियासी वजूद के लिए जद्दोजहद करते हुए धनेंद्र साहू अंतत: 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी परंपरागत सीट अभनपुर से हार गए।
इधर बघेल के निशाने पर रहे दूसरे नेता ताम्रध्वज साहू को बघेल ने सीएम की कुर्सी से किनारे करने के कुछ समय बाद ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पिछड़ा वर्ग विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से भी हटवा तगड़ा झटका दिया । चूंकि वे भी सीएम बघेल के गृह संभाग व जिले से ही थे और जातिगत समीकरणों के चलते हुए बघेल पर भारी पड़ते तो थे ही साथ ही भविष्य के लिए बड़ी चुनौती भी बने हुए थे इस लिहाज से उन्हें कमजोर करने के साथ संभाग - जिले के जातिगत समीकरणों को साधने उनके स्थान पर बतौर विकल्प किसी भरोसेमंद नये नेतृत्व को सामने लाना था जिसकी परिणीति दुर्ग संसदीय सीट पर प्रत्याशी के रूप में राजेंद्र साहू की हुई । भले ही राजेंद्र साहू चुनाव हार गए हैं लेकिन बघेल अपने संभाग में जाति का समीकरणों को अपने खास समर्थक पर केंद्रित करने में काफी हद तक सफल रहे ।इधर बाहरी प्रत्याशी होने के बवाल में उलझे ताम्रध्वज साहू को मैदान में उतार धनेंद्र साहू जैसे निहत्था छोड़ दिया गया उन्हें ना तो आवश्यक संसाधन उपलब्ध उपलब्ध कराए गए और नहीं यहां स्टार प्रचारक के रुप में किसी बड़े नेता की सभा कराई गई वैसे भी साहू के नाम की घोषणा कांग्रेस पार्टी द्वारा काफी विलंब से किए जाने के कारण वे प्रचार अभियान में काफी पीछे रहे, कई जगहों पर तो उनके चुनावी कार्यालय भी नहीं खुल पाए थे। राजनीतिक पंडित ताम्रध्वज साहू के नाम की घोषणा होते ही यह मानकर चल रहे थे कि तमाम झंझावतों के बाद भी यदि वे यहाँ से चुनाव जीत जाते है तो प्रदेश के जातिगत समीकरणों के मद्देनजर कांग्रेस आलाकमान के समक्ष बघेल के विकल्प के रुप में एक मजबूत चेहरा सकते है, तो दुर्ग ग्रामीण से विधानसभा चुनाव हारने के बाद महासमुंद संसदीय क्षेत्र से भी हार जाते है तो उम्रदराज साहू के सियासी सफर का अंतिम चुनाव भी हो सकता है । बहरहाल साहू का नाम इस सीट पर अब तक के रिकॉर्ड मतो से हारने वाले प्रत्याशी के रूप में शुमार हो चुका है, वे योजनाबद्ध रणनीति के शिकार हो चुके है।उनके सियासी सफर पर पंडितों का अब अनुमान कितना सटीक बैठता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा ।
ये रहे ' हाट ' सीट महासमुंद के ऐतिहासिक जीत के मैदानी रणनीतिकार.....
कांग्रेस पार्टी द्वारा महासमुंद संसदीय सीट के लिए पूर्व गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू के नाम की घोषणा करते ही भाजपा खेमे में हलचल सी मच गई वे यहाँ के जातिगत समीकरणों को लेकर चिंतित नजर आने लगे । 2019 के जीत की हैट्रिक के पश्चात कांग्रेस के इस बाउंसर पर चौका लगा पाना बेहद चुनौती पूर्ण लगने लगा। यदि सूत्रों की माने तो यहां रूप कुमारी चौधरी को टिकट दिलाने में मोदी - शाह के करीबी वित्त मंत्री ओपी चौधरी की बड़ी भूमिका रही है कांग्रेस से साहू के नाम की घोषणा होते ही वे इस सीट को लेकर काफी चौकन्ने और संजीदा हो गए पर्दे के पीछे रह अपनी कुशल रणनीति को मैदान में झोकते रहे। वही प्रदेश साहू संघ के प्रदेश अध्यक्ष के दौरे और उनके चुनौती पूर्ण बयानों के बाद प्रदेश के डिप्टी सीएम अरुण साव , पार्टी द्वारा नियुक्त यहां के चुनाव संयोजक व यहां के पूर्व प्रत्याशी रहे मोतीलाल साहू के साथ साजा विधायक ईश्वर साहू, राजिम विधायक रोहित साहू भी एक्टिव मोड में आ जातिगत बाड़ेबंदी रोक हालात संभालने में पूरी ताकत झोंक दी,साव धमतरी, कुरुद, राजिम, महासमुंद और खल्लारी विधानसभा की गोपनीय तौर सतत् मॉनिटरिंग कर दिशा निर्देश देते रहे तो पार्टी के मिनी स्टार प्रचारक ईश्वर साहू अपने नुक्कड़ जन सभाओं के माध्यम से गांवों , गली,कूचो को मथने कोई कोर - कसर नही रख छोड़ी। ये नेता जातिगत बाड़ेबंदी को रोकने में पूरी तरह सफल भी रहे, रही - सही कसर 90 के दशक में इस संसदीय सीट के चुनाव संचालक और सांसद प्रतिनिधि की भूमिका निभा चुके राजिम विधानसभा के पूर्व विधायक संतोष उपाध्याय ने अपने अनुभव के आधार पर पूरी कर दी वे खल्लारी राजिम के साथ-साथ बिंद्रा नवागढ़ क्षेत्र में निरंतर निगरानी करते रहे और अंततः इन नेताओं की संयुक्त सधी हुई जमीनीं रणनीतियों की बदौलत भाजपा इस हाई प्रोफाइल सीट पर अपने डेढ़ दशकों से चले आ रहे हैं कब्जे को ऐतिहासिक जीत के साथ बकरार रखने में सफल रही। बता दे कि इस सीट पर यह भाजपा की लगातार चौथी जीत है 2009 में जीत का मार्जिन 51475 , 2014 में 1217 , 2019 में 90511 और 2024 में 145456 रहा ।रुपकुमारी को महासमुंद जिले से 32584 ,गरियाबंद जिला से 50008 , व धमतरी जिले से 61935 मतो की बढ़त मिली।आठो विधानसभा क्षेत्रों में 37006 मतो से लीड की बड़ी मार्जिन धमतरी विधानसभा के नाम रहा।




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